प्रधानी

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ऐगै रे ऐगै
पार धार प्रधानी
पँचो कि स्याणी
साल भैरि एक बजट
सार मजदुरी घर चँडै
जन बँकुरी देव चँडै
गौणू मा यू बौई रे
वोट कू यू डौई रे

देखै रे देखै
विकास कि फौख
सार गौ बिखुडि
अन्चौ कि पन्चौ कि
गौ बाँटा मन्चौ कि
ब्लौक मा छौई गै
सार बजट निगेयि गै

खेगै रे खेगै
पार धार प्रधानी
बाँट बोल चौमास धौई
रुँडि दिन स्वँजल छौइ
त्यारो ही जय जयकार

केगै रे केगै
वोट कू बोट लगै
लम्ब पुछौडि जन प्रधानी
यैक छण आँखा चार
सार गौ खसौडि तार

ऐगै रे ऐगै
पार धार प्रधानी
पँचो कि स्याणी

लेख- सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तँराखण्ड

घस्यार

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जब बनती है घस्यार तू
डाँल देख घै कू सैप
कर देती माँटि छैक
सिप छू उजाडि हाथ
तेरो ही निशाणि साथ

चार आँठ्ठ तल-मल
छैकि तेरो हाथ
दगडि घस्यारि त्यार
बिछण हे जानि म्यार
मौसि-मासि भिडँ लाल

स्याँर कि खँरुणि तू
घाँ कि चँरुणि तू
उपँरु कि स्यार कि
सबू कि मँवाशि कि
कर दीछि तू मँलाल

डौई रुछै आर-पार
नजर बचै कि लाख
बैठि रुछि त्यर पछिण भेद
कैक हाथ नै लागणि सेद
जब बनती है घस्यार तू
ख्वँर डाँलू हाथू मा मुबाईल यार

लेख- सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तँराखण्ड

“म्यर बैणा तूँ हैगे विराण छँजगै तेरो डोला अजाण” (कुँमाऊ ब्यौ गीत)

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म्यर बैणा तूँ हैगे विराण
छँजगै तेरो डोला अजाण
जा बैणा जा चेलि
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि

पार धाँरु छैगे
बरैतियोँ क रमँरौडि बैणा
लाल निशाँणु लिबै ऐगो बँणा
ढोलँ ढमँऊ नाचा कुदि
र्ध्वग मा ऐगो त्यर बणा.. बैणा
मुकुटै माँऊ त्यर मन मित
सँजगै बैणा बेदि रित
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि॥
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि॥
माँठ माँठू ऐ तूँ जय माला पैरे॥
माँठ माँठू ऐ तूँ जय माला पैरे॥

म्यर बैणा तूँ हैगे विराण
छँजगै तेरो डोला अजाण
जा बैणा जा चेलि
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि

ईष्ट मिञ बरैति घरैति
ग्वँल पिठाँ त्यर दाँन बैणा
बेदि मा बैठि
सँजै धँजै त्यर डोँट न्थूलि
दुध धाँरै जै रुप बैणा
बेदि मा बैठि
नि रँवै भैजि कै आज
सात फैरुँ क सात कँसम
हैजाल बैणा पुर रँश्म
कँन्यादाँन त्यर शँय्यादाँन
त्यर म्यर बीच बेदि रित
कँन्या पक्ष बै वर पक्ष कि तूँ बैणा
त्यर म्यर बीच बेदि रित
आँखा आँसू छँलकै गीत॥
आँखा आँसू छँलकै गीत॥
आज पराय बैणा प्रीत॥
आज पराय बैणा प्रीत॥

म्यर बैणा तूँ हैगे विराण
छँजगै तेरो डोला अजाण
जा बैणा जा चेलि
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि

ना रो नि रँवै हे बैणा तूँ
कँका ताँऊ घैँ भैटि
बैठि जा तूँ डोला मा
तूँ हैगे दाँन
छोडि दे घर आँगण थाँण
जा बैठि जा डोला मा
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि
जा बैणा जा चेलि
बैठि जा तूँ डोला मा
भेजि कँध त्यर डोला मा
नि छोडि बैणा आँसू मा
ना कर देर जा बैणा
सफेद निशाँण लाँगगो बाँट
बैठि जा तूँ डोला मा॥
बैठि जा तूँ डोला मा॥
अब नि थाँमण म्यर आँखा आँसू॥
अब नि थाँमण म्यर आँखा आँसू॥
जा बैणा जा चेलि
दुरँकुणै दिन तूँ आलि बैणा
आपणु भैजि क घर आँगण
जा बैणा जा चेलि॥
जा बैणा जा चेलि॥

म्यर बैणा तूँ हैगे विराण
लैगे त्यर डोला अजाण
जा बैणा जा चेलि
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि॥
म्यर आँखा हैँसि आँसू ना छोडि॥
जा बैणा जा चेलि॥
जा बैणा जा चेलि॥

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

हे भगवति माता सुन माता सुन पुँकार

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हे भगवति माता
सुन माता सुन पुँकार
दर दर भटकि
माँ ममँता दैणु कू प्यासि
बस माता ठोकर छू पायि
आँचल कू यू क्याँरि सूणि
सूणि हैगे जूणि मेरी
हे भगवति माता
तू ले कि नारि
कै एक नारि कि दुख नि जाणि
ज्युँ दे त्वीलै यु नारि रुप
माँ बणकु सुख ले दे
मी लाचार बणिक त्यर थाणो मा
गो हत्या नि बन वे माता
एक नारि माँ नि बन पायि
गो हत्या नि बन वे माता
गो हत्या नि बन वे माता

हे भगवति माता
सुन माता सुन पुँकार
रोज उणाल त्यर लाख भँक्त
कै गिनति नैहेतो भँक्तो मा मेरी
सबकू दिछै मन वाँछित वर तू
जो ऐजा माता त्यर थाणो मा
मी ले कि ऐरु
यु बँजर आँचल त्वैमा फैलि माता
एक अँकुर दे
माँ रुपि एक जूणि दे
ज्युँ दे त्वीलै यु नारि रुप
माँ बणकु सुख ले दे
मी लाचार बणिक त्यर थाणो मा
गो हत्या नि बन वे माता
एक नारि माँ नि बन पायि
गो हत्या नि बन वे माता
गो हत्या नि बन वे माता

हे भगवति माता
सुन माता सुन पुँकार
जबै मैथे बाँजण कुणि
बस म्यर आँखा आँसू रुँ
बस म्यर आँखा आँसू रुँ
बडे आस सै ऐरु माता
सब जाँग फैलि हाथ वे माता
बस निराशा लागि हाथ
साँस सौरा ले कौसि है
स्वामि ले मुख मोडि है
जँग तानोँ सै हारि माता
त्यर चरणोँ मा ऐरु माता
ज्युँ दे त्वीलै यु नारि रुप
माँ बणकु सुख ले दे
मी लाचार बणिक त्यर थाणो मा
गो हत्या नि बन वे माता
एक नारि माँ नि बन पायि
गो हत्या नि बन वे माता
गो हत्या नि बन वे माता

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved

“कुमाँऊणि पाठ-शाला” (विषय- क्वँर)

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“कुमाँऊणि पाठ-शाला”
(विषय- क्वँर)

परुँल- परुँ “चाँआ”(चाय) पका दे रे

परुँ- ठीक छू ईजा

“परुँवा बौज्यु क्वँर छाटँण मा लागि भाय”
(परुँवा बौज्यु चावल मे से धान के बीज अलग करने मे लगे है)

परुँ- वँयि(माँ) चाँआ दगै कै ठुँग ल्यूँ

परुँल- क्वँर चाँआ दे

परुँवा बौज्यु- क्वँर ता चाण मा लारिण (परुँवा बौज्युल सोचा मुझे बोल रही है)

परुँ- बौज्यु बौज्यु आ ईज क कै हैगु

परुँवै बौज्यु- किले रे कै कुणै त्यर ईज

परुँ- बौज्यु ईज चाँआ दगै क्वँर माँगने

परुँवै बौज्यु- अच्छा ले य क्वँर दिदै आपण ईज कै

परुँ- ओ ईजा ले चाँआ

परुँल- ला दै

परुँ- ले ईजा हाथ कर

परुँल- अब कै दिणछै रे मिल क्वँर चाँआ मागौ

परुँ- हौय क तबै ता चाँआ दगै क्वँर लिबै ऐरु

परुँवा बौज्यु- आओ भुला ददा मि बतुणु क्वँर क मतलब
(कुमाँऊणि शब्दावलि क क्वँर क दो मतलब हुणि)

क्वँर@1- चावल मे जो धाँन के बीज होते है उनै क्वँर कहा जाता है कुमाँऊ मे

क्वँर@2- इसका दुसरा अर्थ ये है क्वँर क्वँरै मतलब खालि

(“क्वँर चाँआ दे” के दो मतलब निकलते है-
1- मिठा रहित चाय देना
2- चावल से धान के बीज ढुँढना तो)

(“वँयि” कुमाँउणि शब्द जिसका अर्थ माँ है)
(“ठुँग” चाय मे प्रयुक्त होने वाले जैसे- चिनि, गुड्डँ, मिस्सरी इत्यादि को ठुँग कहा जाता है)

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved

दुख छिपाती पहाडि नारि

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“ओ रे मेरी पहाड कि नारि
तुमको मेरा कलम सलाम”

लुट लगाती दुख छिपाती
“कटै से लेकर बदै तलक
खेत से लेकर लुट तलक”
र्दद छिपाती काटो मे चलती
“एक पुँवा से एक घटोव तक
पैर हिटै से ख्वर धरण तक”
ऐसी होती पहाडि नारि

विचँल अवस्था अचँल ये रहती
माँग सिन्दुरि आस मे रहती
“डाल दाँथुलि जोड लपेटि”
इनसे पुछो र्दद छिपाती
खेत खलियान दगडियो सँग

र्दद हँवा का झौका चलता
“अँवाई घालि युँ र्दद छिपाती”
जबै युँ पडती सिर मे इनके
धर्म किनारे हल चलती
ऐसी होती त्याग वेदना
“कालि रुपि सरस्वति वार्णि”
फिर भी सहेती दुख है प्यारि

समाज निगाह से…!
कँटु वचन से…!
भुर्ण हत्या से…!
दहेज प्रथा से…!
कैसी है रे त्याग वेदना
ओ रे मेरी पहाड कि नारि

“तुमको मेरा कलम सलाम”
निम (नियम) धर्म मे चलती है तूँ
समाज निगाह से पिटती है तूँ
पति प्रेम के हाथो पिटती
विकल वेदना सहेती नारि
सुख तलाश दुख पिड़ा मे
दुख छिपती है ये नारि

क्या क्या ना सहेती.. है रे नारि
दुख छिपाती…
तेरी जीवन गाथा!
दुख छिपाती…
तेरी जीवन गाथा!

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved

“आ सुणडा यु रिर्वाज कुँर्मो होई कु जुबान”

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(होली-होरी-होई)

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“आ सुणडा यु रिर्वाज
कुँर्मो होई कु जुबान”

फाँल्गुण मास एक गतै
21 दिन बैठ होली
गाजि-बाजि सार कुँर्मो
कुँर्मो होली गीत मा
गौ गाड़ा झौवड चाचरि
गौ बखाई घर- घरा
नान-ठुला बुँढ-बाँढा
ढोल-ढमँऊ हुडकि बौल
शिवराञि कु… शिव होलि
शिव होली मा नर-नारी
काथ-पुराण लोकगीत
गाजि-बाजि सार कुँर्मो
रँग मँगडि नर- नारी
रँग मँगडि नर- नारी

छै दिनु ठाड होई (खडि होली)
बखाई बखाई यु घुमि
कुरता-पजाम टोप मा
घँघरि डालि घेर मा
झौवड चाचरि नर- नारी
होली स्वाँग कु भरमार
देव लौगुण गीत मा
ले चढै होली आग
ले चढै होली आग

ठाड होई कु पँचवा दिन
निशाणु प्रतितक तै
ढोल- ढमँऊ छाजि गीत
सार कुँर्मो गौ वा गौ
देवि थाण होली चैढ
देवि थाण होली चैढ
बुरँशि खिलि दब्यतू थाण
ढोल-ढमँऊ गाजि- बाजि
कौतिकै होली उकाल
नान कै ठुला खूब झुमि
कौतिकै हुलार होली
कौतिकै हुलार होली

ठाड होई कु छटँवा दिन
छटँवा छँलडि होली कु
सार कुँर्मो भिजि जा
छँपडा छँपौड होई मा
पानि कु बौछार तै
पानि कु बौछार तै
माँठ-माँठु यु हुलै

“कुँर्मो होली कु हुँयार
कुँर्मो होली कु हुँयार”
नैऐ धौई…
हँलवा होली यु पकै
देव कु पँखुवा चैढ
ईष्ट मिञ गौ गाड़ा
होली कु प्रसाद बँट
होली कु प्रसाद बँट

“आ सुणडा यु रिर्वाज
कुँर्मो होई कु जुबान”

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right sundarkabdola , All Rights Reserved

कितनी किमती थी ओ चिट्टी ना सुनके छलकि आँखे जिसकी

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‘कितनी किमती थी ओ चिट्टी’
जिसको मै था देता
उसकी खुशिया मे ही पाता
गाँव का था मे एक तारा
जिस बाँटु से होकर मे था जाता
गाँव कि ताई बेटि ब्वारि
बडे आस से पुछ ही लेती

“ओ डाँक्वान दाज्यु”

म्यर चिट्टी ले आई छा कै
दिल ले म्यर भौते दुखछि
“ना हो ब्वारि नि छू आई”
ना सुन के छलकि आँखे जिसकी
कितनी किमती थी ओ चिट्टी

छिडि लडाई कारगिल कि
शरहद से राजखुशी पैगाम ना होता
माँ कलेजा फट ही जाता
चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
शरहद मे बैठा लडका उसका
टक टकि यु लगै
ईजा बौज्यु भै बैणि चिट्टी पतर सुवा कु
ना जाने कितने बार पढा था
उस फौजि नै
उस फौजि नै
कितनी किमती थी ओ चिट्टी

ना सुन के छलकि आँखे जिसकी
चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
फिर जो लिखती थी ओ चिट्टी
शाम सवेरे रात उजाले
लुकि छुपि कि मन कु बात
खुश दुखै कि होती बात
चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
हराऊ हरेला चिट्टी मे आता जाता रहता
अगर तू लिखता रहता चिट्टी
अगर तू लिखता रहता चिट्टी

कितनी किमती थी ओ चिट्टी
चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
ना सुन के छलकि आँखे जिसकी

गुम होती हस्तलिखित लिखावट
एक चिन्ता एक बहेस..?

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

दर्प-दहा

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“दर्प-दहा”

कैकु भल जै हैई
दर्प-दहा यु पैलि रैई
कैकु घर मा लागि
यु बण मा लागि
सदाबहार…
जेठ कु चड़कण घाम कू जैसोँ
छाँव मिलो ना ठण्डोँ पानि
दर्प-दहा ज्युँ दिल मा मेरोँ
मैत कु दब्यत सौरास पुकारि
पुजण मा रुणि साल महेण
दर्प-दहा यु सैणि-मैसि
लडणु-झगणु ऊमर यु गुजरि
दर्प-दहा मा दुनिया छाडि
छाडि सबै…
जैक लिजि दर्प-दहा
जैक लिजि दर्प-दहा

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right, All Rights Reserved

“जा रे काँवा म्यर मैतौणि र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा”

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जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
कै दैई म्यर बाबा तै
बालँपनो कु उ दिना
हैँसि खेलि घर आगँण
जवानी कु यु कै पाँखा लागि
र्फुर उडाई… किले रे बाबा
बालँपन कु घोला छाडि
छोडि तुमरु द्धार बाबा
किले रचाई म्यर ब्याह हो बाबा
किले बनाई पराई हो बाबा
किले बनाई पराई हो बाबा

ओ म्यर लाडली प्यारि चेलि
तू छै मेरो जूँ अर पराण
चेलि जात कू यु छा रश्म
“एक दिन जाण पडु रे
अपणु स्वामि कु द्धार”
चेलि कू यु छा जात
जा चेलि तू अपणु द्धार
पराई हैग्यु यु मेरो द्धार
त्यार-ब्यार मा रौनक हौलि
जबै तु आलि मेरो द्धार
जा चेलि तू अपणु द्धार

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
झुरि हौलि म्यर ईजा
आगँण कु एक कोनु मा
बैठि हौलि म्यर ईजा
टुकुड-टुकुड उ चाणि हौलि
त्यार-ब्यार कु गिनती रौलि
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
राजि-खुशि छू.. कै दैई..
“दुख लगै नि कैई रे”

ईजा-बाबा झुरि जाला
आँखा आँसू बरकि जाला

राजि-खुशि छू तुमरि चेलि
दुख लगै नि कैई रे
दुख लगै नि कैई रे
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
र्फुर उडि जा मेरो काँवा

ओ म्यर लाडली प्यारि चेलि
तू छै मेरो जूँ अर पराण
साल महैण यु बिति गिण
त्यार-ब्यार ले पुरि गिण
किले नि ऐई मेरो द्धार
रिसै-रिसाई छै कि तू
राछि-खुशि कै दुख-पिडा
ओ रे काँवा सच बते दै
मेरि चेलि दुख-पिडा
मेरि चेलि दुख-पिडा

तुमरि चेलि दुख-पिडा
कसकै लगु मि मुख-पिडा
साँस-ससूर ले दहैज मा टोकि
रोज निकलणु आँसू आँखा
लुकि-छुपि कि…
ओ म्यर बाबा… ओ म्यर ईजा…

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
कै दे मेरो ईजा-बाबा
राजि-खुशि छू तुमरि चेलि
दुख लगै नि कैई रे
“ईजा-बाबा झुरि जाला
आँखा आँसू बरकि जाला”
राजि-खुशि छू कै दैई
दुख लगै नि कैई रे
दुख लगै नि कैई रे
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
र्फुर उडि जा मेरो काँवा

लेख-सुन्दर कबडोला
18/01/2013
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

ओ ईजा….म्यर ईजा

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म्यर ईजा…
कन याद समाई ममता मा
दुध भात खिलाई बचपन कु
जब याद ले उँछि ओ ईजा
मन ले दौडि त्यर बाँट पिछाणि
म्यर ईजा…
ब्याव बखत कमरा पँहुचदु
बुलबुलि ऐण मा करि
बनठनि कु सितणु छू
स्वैण मा लै जुण घर उत्था जी
भल आँगणि एक घाँघरि
म्यर ईजा…
निँद मा हैग्यु घनाघौर हे ईजा
जन पिछाडि मुड़ जा ईजा
देश बे ऐरु त्यर भेट-भिटाणु
सुपि-सुपणियोँ मा ऐग्यु घौर
म्यर ईजा…
स्वैण टुटण तै पैलि
हँसदि मुखडि मिठु बोल
चौथार मा बैठि फँसक लगाणु
म्यर ईजा…
स्वैण टुटि जौल राति ब्याण
ऐण मा दैखुण…
टिक पिठाँ यु आँसु आल
टिक पिठाँ यु आँसु आल
त्यर बिन कसकै कटनु दिन म्यरा
तिमलु पाता पाण धरि पराण म्यार
ओ ईजा….म्यर ईजा

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

ओ माँजि… म्यर माँजि!

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ओ माँजि…. म्यर माँजि….
त्यर मयालु आँचल मा
बचपन बितो जवानी मा
ले गिण माँजि परदेश मा

‘भूख लागण ऐजा खेजा
को छू अब धात लगौणि’
पापी परदेश मा…
याद ले औणि ओ माँजि
त्यर धात लगौणि
भात पशै… ऐजा रे
‘याद ले औण्दी त्यर रसीलो भात दगडि’
‘जब भूख ले लागदि दिन मा देखि’
मन ले बौडि… रुक जा माँजि
मै ले आन्दु… भात कौ खाणु
टप-टप टपकि
त्यर याद मा माँजि
”भूख लागण ता थामि ल्युण
त्यर याद नि थामि ओ माँजि
त्यर याद नि थामि ओ माँजि
त्यर याद नि थामि ओ माँजि”
कसकै थामि पापि मन तै
ओ माँजि…म्यर माँजि

तु रुन्दी रूख मा
म्यर माँजि हुर्णल दुख मा
य सोचि-सोचि त्यर दुखमा
आँख बे टपकि बँण्धार क पाणि
भुख ले थामि म्यर मुखमा
त्यर दुख-पिडा म्यर हैजो माँजि
अगिल जन्म ले हैजो म्यर माँजि
ओ माँजि… म्यर माँजि…

‘भूख नि लागण
त्यर याद लागण’
ऐजा खेजा कब कौलि
त्यर याद ले औणि
म्यर डाँड ले जाणि
बैशाख मैहण मा छुट्टी औणा
‘त्यर म्यालों ममता क भेट करु’
ओ माँजि… म्यर माँजि…

कै तू कौलि… कै मि कौला
दुख पिडा साथ जतुणा
पुराण दिना क छुई लगुला
त्यर दगडि गढ मा जूणा
फँसक-फँसक मा हाथ बटुणा
त्यर दगडि धाण माणुणा
पराल पुठोरि पुठ मा ल्युणा
पराल पुठोरि लुट मा दुणा
लुट क छाया थाक बिसुणा
ओ माँजि… म्यर माँजि…

गिनति रैगिण छुट्टी हौला
दुखले त्यर मुख मा हौला
ओ माँजि… म्यर माँजि…
अब ता पौणु हैगिण घर मा देखि
“टिक-पिठा कुछ आँसू आला
पुर याद समालि झौलि मा
मैले जाणु परदेश मा माँजि”
परदेश मा जैबे याद पुठोरि
रोज दैखण…
ओ माँजि… म्यर माँजि… !

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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“ओ परुँवा बौज्यु भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ”

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ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट
फिर कौलि मैथे रे
ओ परुँवा बौज्यु…
“चपल कै ले छा यस”

ओ परुँवा बौज्यु
सुन-सुनै यु गीत सुनि
उत्तँराखण्ड मा धूम मचि
नान कै ठुला खूब झुमि
अब हैगिण हम दी बुँढा
सुपर हिट गीत कु
यु कुडि यकलु हम
का बै कुनु… ओ परुँवा बौज्यु
“चप्पल कै ले छा यस”
परुँ ले हैगोँ जस
जमान ले ऐगोँ कस
ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
हिट दगडि परुँवा बौज्यु
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट
कौथिकै डबलू कू खेल छू
सुपणियो हैरु… घर मा मैरु…
काण पडि गगरि तै…. चूँगि गो
डबलू कू पाणि नै
डबलू कू पाणि नै
साल महैण बिति गिण
हाँट-बाँट टुटि गिण
परुँ कु याद नै
परुँ कु याद नै
बुढ-बाढि जुण-मरि ख्याल नै

ओ परुँवा बौज्यु
हुँक्का थामो कश तो मारो
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
घुमि उणा भगवति कौथिक तै
रँग-बँरगि चूडि हला
लाल ज्लेबी पात तै
अणकसै मिजात देखि…. भगवति थान कु
कौथिकै कौतियार ले… झुमि हला
हौसिया मुलार मा
गौ कु चेलि-बेटि
नौ रँगि सिगाँर मा कौथिकै बाँटु तै
पटै गै आँख मेरो
घँघरि कु निल मा
घँघरि कु निल मा
हाथ जुडाणा खूट पडुणा… भगवति माता तै
एक स्वैण दि दै… परुँवा तै
गौ मा तेरो बुढि ईजा
दगडे वैकु
जाँठ टेकु…!
परुँवा बौज्यु
नौ वैकु…!
सुपर हिट गीत कु
सुपर हिट गीत कु
ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट
जाँठ टेकि कौथिकै उकाल तै
कसकै हिटैण…
बुढ पडि पराण तै
चिर पडि जेब मा
डबलू कू पाणि नै
ओ परुँवा ईजा
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
अणकसै रुप तेरो
हिट दगडि परुँवा ईजा
लाल ज्लेबी…
एक चपल मुलै ध्यु
एक चपल मुलै ध्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
ओ परुँवा ईजा
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ

ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

दो दिन के मेहमान है आज

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पहाड कि नारी कितनी प्यारि
सिर मे इनके घाँस का बौजा
कमर दाँथुलि इनके साथ
‘पैर मे कांटा
हाथ मे छाला’
उर्फ ना करती नगै पैरे
पहाड के टेडु मेडु बाँट
एक निवाला चैन से खाती
कैसे आज…?
दिन भर करती खेत मे काम
धुँप भी लगती
प्यास भी लगती
धार अर नौला फर्ज निभाते
देखा मैने…
दो दिन कि छुट्टि मे आज

अदत्त-मदत्त भी करते कैसे
दो दिन के मेहमान है आज
कैसी किस्मत अपनी
ना बच्चो के बढती ऊर्म को देखा
इजा-बौज्यु ढलती ऊर्म भी कैसी
ना सुख-दुखा अपनो के साथ
दो पैसोँ के खातिर
गाँव मुलुक से दुर है पास॥
गाँव मुलुक से दुर है पास॥

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

फिर भी मुझको दर्द नही “मै पत्थर होता”

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फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

दिन तपाता
रात कँपाता
कितने दुख
कितने गम
पथ पे मैरे
अडँचन देती
शाम-सवेरे
प्रेम का बँन्धन
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

कोई बाँटे
जख्म दिलो को
कोई रुलाति
मुझे छलाति
पग-पग पे
कोई भुलाति
घृणा देति
दिलको मेरे
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

प्रेम का
सच्चा पंछी मिलता
मुझे हँसाति
मुझे रिझाति
प्रेम का बँन्धन
र्दद ना होता
अगर जँहा मे
प्रेम ना होता
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

लँहु-लौहान
करते मुझको
करे अंकाल
जो प्रेम कंकाल
देते मैरे
दिलको रैते
करे विंकाल
देखको मुझको
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

चमक जो जाता
प्रेम जगत मे
छिन-हतौडे
से तरस्ता
शब्द भी मेरा
उज्जवल होता
सच्चा प्रेमि
मिलता मुझको
फिर भी मुझको र्दद नही
“मै पत्थर होता”

सूरज-चाँद
रोज तपाते
सच्चा प्रेमि
मुझे बताते
फिर भी देखो
दिल है रोता
मेरा लेख
मुझे बताता
फिर भी मुझको दर्द नही
“मै पत्थर होता”

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

सौण कु महैण

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सौण कु महैण
रुम-झुमि बर्रखालि
झुम-झुमाट हैई छा
ऊँचो-निचोँ डाण्डि मा
फुल-पात खिलणी हौला
बोटु डाई मा
गोरु बाछा डोरि हला
पुछड धरि पुठ मा हौला
गोरु कु गौछार ले
बोटु डाई लुकि हला
गौ कु चेलि-ब्वारि घाँ घटवा
ख्वर मा धरि औणि हौला
चाह कु केतिल
चुल मा धरि खोलणि हौला
बुँढ-बाँढि दगड बैठि
र्फुर-र्फुराण फसैक कौला
कन रँगति यु पहाड
कै कु क्वीड चलणि हला
कै कु मन उदास हौला
सौण कु महैण

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

सुपणियो कि चेलि

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कन रुप समाई रुपि छा
पुर कुँमो उजाणि काया छै
बण-बुँराशी लटुलि चा
गौर-फुनारी मुखडि चा
कै नि देखी यदुक मयालि
कौ गौ कि छै तू चेलि
पुर कुँमो उजाणि रुपि छै
नैनिताल समाई आँखण छा
अल्मोडा उलझि बालुण तेरो
कौसानी छलकि बोलि छै
हिटनी-हिटे कै गौ कि छै तू
नौ बतै जा कै मौ कि चेलि छै तू
जिकुडि मेरोँ…
यु त्वैमा फिसली चा
हे रुपसी कख जानी छै
सुपणियोँ मा आणि-जाणि छै
दी घडि रुक जा रुपसी
“तीस लगौणि कन पाई रुपि छा”
हे रुपसी…
कौल-करार लगैई जा
अब-कब हौलि भेट-भिटाणु
जिकुडि म्यर दु:खणि चा

“दी चार दिनु मा
दुर मुलुक जानु चा”
कै ता…
“बोल वचन बोलि जा
अपणु नौ खोलि जा”
त्यर दगडि ब्यौ रचणु
लिखणु अपणु सुपणियु चा॥
लिखणु अपणु सुपणियु चा॥

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई-बागेश्वर-उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

चला रे कलमु

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सपने बुनु….
तुझ पे कविता लिखदु
दिल को र्दद रचना भरदु
प्रेम सराँश तुझ पे करदु
“चला रे कलमु”
‘सुवा’ नाम पर कुछ उद्धित करलु
उलझे बाल सुलझालु पहलु
तिरछि नजरे कागज पर देदु
मुल-मुल हैँसी शब्दोँ मे रचदु
दर्पण तेरे लेख मे भरदु
धनुष प्रेम मे तुरि चढालु
प्रेम बाण से ढाल हटालु
निशस्ञ प्रेम शँखनाद बजादु
शब्द घोष सी वार्णि तेरु
तुरि बाण से लिपिबद्ध करलु
शीत लहर सी मिठोँ-मिठोँ
एक चुभन सी कविता देदु

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई-बागेश्वर-उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

जल

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‘हिमाल कोण से दुल्हन जैसी
अपने मिलन को दौडि’
प्रेम रँग मे रँगती
कल-कल करती
जल रास रसिया
र्निमल प्रतिबिम्ब शाँन्त सरोवर
निछवर धारा- कटोर धरातल
आलिँगन लेती मिलन घोषणा
करे याञा समुद्र तट को
बाँधित होती हर मोड पे चलती
बाँहे फैली कितने पथ पे चलती
संकल जनोँ कि प्यास बुझाती
गाँव से लेकर नगर-नगर मेँ
हरयाली-खुशयाली देती
जँह-जँह से होकर बँढती
तँह-तँह से मेली गँढती
अशक्त दशा मे समक्ष बर्बरता
जीव प्राणी सहम भी जाते
खेत-खलियान गीत भी गाते
धरती माता प्यास बुझा दे
छण-मण-छण-मण
बर्रखा रुपि आँसू लाती
सर्म्पुण जगत कि प्यास बुझाती
संकुचित रुप इति बना के
सार्मथ्य होती मिलन दिशा
प्रेम रँग मे रँगती देखो
कठीन याञा सफल बनाती
“कुछ क्षण ठहर भी जाती
अपने मिलन तट किनारे”
समुद्र है खारा
नदी है शीतल
मिलन भी होता आत्म मंथन जैसा
“प्रकृति जगत कि सच्ची प्रेम धारणा
चल के देखो देव मान्यता”

लेख-सुन्दर कबडोला
© 2013 Copyright पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एक उँडाण गौ- गुठाँरु

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गौ-गुठाँरु पँछि हौला
एक उँडाण गौ-गुठाँरु
बौटि डाई घुमि आला
फल फुलारु रमडि हौला
बुढ-बाढि फल टिपणि हौला
च्याला ब्वारि घौर कु औला
ईजा-बौज्यु बुढि-बाढा
हँसणि मुखडि हँसणि रौला
आँगण मा नान दौडि रौला
बुँढ पराण कस हौँसि हौला
जण सोचि लिया
जण सोचि लिया
म्यर गौ-गुठाँरु पँछि हौला
यकुलु पराण कण सुखि हौला
ईजा-बौज्यु कै सोचणि हाला
आस पराई कण रिश्त बनाई
गौ-गुठाँरु पँछि हौला
phadi kavita blog

लेख-सुन्दर कबडोला © 2013

ऐकु दिल मेरोँ चा

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जिन्दगी यु मेरी
त्वैमा धरि चा
ऐजा दी घडि
भल कै जी लैणु
कै तु मैते कौलि
कै मि त्वैते कौला
चार दिनु कि हुछि
मुलारी जवानी
मुलारी जवानी
चाँद सी मुखुडि
रण-मणि सँभाव
ऐकु दिल मेरोँ चा
उले बसि…
त्वै-मा चा
उले बसि…
त्वै-मा चा

लेख-सुन्दर कबडोला
21/5/2012