जल

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‘हिमाल कोण से दुल्हन जैसी
अपने मिलन को दौडि’
प्रेम रँग मे रँगती
कल-कल करती
जल रास रसिया
र्निमल प्रतिबिम्ब शाँन्त सरोवर
निछवर धारा- कटोर धरातल
आलिँगन लेती मिलन घोषणा
करे याञा समुद्र तट को
बाँधित होती हर मोड पे चलती
बाँहे फैली कितने पथ पे चलती
संकल जनोँ कि प्यास बुझाती
गाँव से लेकर नगर-नगर मेँ
हरयाली-खुशयाली देती
जँह-जँह से होकर बँढती
तँह-तँह से मेली गँढती
अशक्त दशा मे समक्ष बर्बरता
जीव प्राणी सहम भी जाते
खेत-खलियान गीत भी गाते
धरती माता प्यास बुझा दे
छण-मण-छण-मण
बर्रखा रुपि आँसू लाती
सर्म्पुण जगत कि प्यास बुझाती
संकुचित रुप इति बना के
सार्मथ्य होती मिलन दिशा
प्रेम रँग मे रँगती देखो
कठीन याञा सफल बनाती
“कुछ क्षण ठहर भी जाती
अपने मिलन तट किनारे”
समुद्र है खारा
नदी है शीतल
मिलन भी होता आत्म मंथन जैसा
“प्रकृति जगत कि सच्ची प्रेम धारणा
चल के देखो देव मान्यता”

लेख-सुन्दर कबडोला
© 2013 Copyright पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एक उँडाण गौ- गुठाँरु

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गौ-गुठाँरु पँछि हौला
एक उँडाण गौ-गुठाँरु
बौटि डाई घुमि आला
फल फुलारु रमडि हौला
बुढ-बाढि फल टिपणि हौला
च्याला ब्वारि घौर कु औला
ईजा-बौज्यु बुढि-बाढा
हँसणि मुखडि हँसणि रौला
आँगण मा नान दौडि रौला
बुँढ पराण कस हौँसि हौला
जण सोचि लिया
जण सोचि लिया
म्यर गौ-गुठाँरु पँछि हौला
यकुलु पराण कण सुखि हौला
ईजा-बौज्यु कै सोचणि हाला
आस पराई कण रिश्त बनाई
गौ-गुठाँरु पँछि हौला
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लेख-सुन्दर कबडोला © 2013

ऐकु दिल मेरोँ चा

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जिन्दगी यु मेरी
त्वैमा धरि चा
ऐजा दी घडि
भल कै जी लैणु
कै तु मैते कौलि
कै मि त्वैते कौला
चार दिनु कि हुछि
मुलारी जवानी
मुलारी जवानी
चाँद सी मुखुडि
रण-मणि सँभाव
ऐकु दिल मेरोँ चा
उले बसि…
त्वै-मा चा
उले बसि…
त्वै-मा चा

लेख-सुन्दर कबडोला
21/5/2012

दहैजि गब्बर

कुनयी भिडोँ यु 25 गत
जँवै छू उणि 26 गत
रँग-लूटि बे जम्मु जै रो
माँग ले हैगोँ ऊँचो निचोँ
बिन गाडि नि जैई सैगोँ
जँवै तुमारोँ फौजी हैगोँ
टाट मा सितणि
ठाँट-बाँट मा हैगोँ
“सफेद घोडि मा चेडि ऐरोँ
दहेज कु लिस्ट साथ मा लेरोँ”
महाराज…..
यु मँडप मा सँन्नाटा हैगोँ
गब्बर जस वर जै ऐगोँ
अगल-बगल … खुचुड बुचुड
‘जय’ और ‘वीरु का छा तुम
पहाड मा ऐगोँ यु गबर
पहाड मा ऐगोँ यु गबर

लेख-सुन्दर कबडोला
13/12/2012

ठिठुरि जात

कलम कु स्याहि निमडि गै
विषय हमारु यु बदलि गै
“गीत कु र्गज – रित कु र्तज
छीटा काँसी – मिठा भाषा”
डबलु मा हैगिण यु ले र्दज
पहाड मा देखि यु ब्यार
सबै हैगिण ठिठुरि जात
हल बान कु हलिया लाख
सैणि हैगिण विकु जाग
गौ मा ऐगोँ निठुरि आग
पुराण सँस्कृति लागि डाम
अणरि-उजलि सबै घाम
रिर्वाज ले गिण चारोँ धाम
देवभुमि तै यु परत
कैल रचि…?
अगडि-पगडि सबै भाग
अयाण-सयाण ले हैगिण पात
बीरबल कु खिचडि जै यु पाक

लेख-सुन्दर कबडोला
15/09/2012

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गौ-गुँठारु ब्यौ बरातु ढोल-ढँमाऊ मैले नाचु छोड-चाचुडि हिट काकुडा छम छमा छम नाचि दैणु पाडि बाज मा ओ बौजि ओ आम्मा एक फरैक तु ले आ कुँमौणि गीत तै ठुमा ठुम नाचि दैणु भैजि कु बरात मा “रोकि दै दगडियो … Continue reading

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