गौ-गुँठारु पँछि रे

Aside

एक उँडाण गौ-गुँठारु
घुमि आला डाना-काना
गाड़-ग्धेरा बगणि पाणि
तिस लगौणि ठण्डोँ जाणि
ईजा-बौज्यु थामि तिसु
खिलणी हौलि यु बुँराशु
जै दिन गौ-गुँठारु आला
गौ-गुँठारु पँछि रे

बोटा-डाई घोला छाडि
उडणि हौला चाँड पथिला
गोरु ले जाणि बण मा हौला
आस मा हौलि बुढि माँजि
शाष पडि तै लोटि आल
शाष पडि तै लोटि आल
गौ-गुँठारु पँछि रे

खिलणि हौलि यु हजारी
बोटु-डाई हौलि लाई
श्यार मा देखि पिँगलि रैई
घाँ हुणि घसैर रे
जै रुणि….
कै कु ईजा, कै कु चेलि
कै कु बैणि, कै कु सुवा
ट्यड-म्यडो-गढ़ भिडोँ बाँटु मा
बैठि हला आस मा
अब आला-कब आला
भेट भिटाणु….
गौ-गुँठारु पँछि रे

डँक-डँकई माँजि हैई
पाण कु पण्धेर मा
बिसे दिला यु चा बौझा
गौ-गुँठारु जै दिन आला
बाँट मा चाणि हौलि रे
आस मा रौलि रोज रे
तेरी माँजि मेरी माँजि
गौ-गुँठारु पँछि रे

बांझ पडि बौज्युक कुडि मा
दवार पटल टुटी रे
पाँख ले चुगणि हैगोँ रे
किले रे छाडि रे
हमर रे पहाड रे
चै-चितैई जाला
गौ-गुँठारु पँछि रे
एक उँडाण गौ-गुँठारु
एक उँडाण गौ-गुँठारु

लेख-सुन्दर कबडोला
© 2013 पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved