“जा रे काँवा म्यर मैतौणि र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा”

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
कै दैई म्यर बाबा तै
बालँपनो कु उ दिना
हैँसि खेलि घर आगँण
जवानी कु यु कै पाँखा लागि
र्फुर उडाई… किले रे बाबा
बालँपन कु घोला छाडि
छोडि तुमरु द्धार बाबा
किले रचाई म्यर ब्याह हो बाबा
किले बनाई पराई हो बाबा
किले बनाई पराई हो बाबा

ओ म्यर लाडली प्यारि चेलि
तू छै मेरो जूँ अर पराण
चेलि जात कू यु छा रश्म
“एक दिन जाण पडु रे
अपणु स्वामि कु द्धार”
चेलि कू यु छा जात
जा चेलि तू अपणु द्धार
पराई हैग्यु यु मेरो द्धार
त्यार-ब्यार मा रौनक हौलि
जबै तु आलि मेरो द्धार
जा चेलि तू अपणु द्धार

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
झुरि हौलि म्यर ईजा
आगँण कु एक कोनु मा
बैठि हौलि म्यर ईजा
टुकुड-टुकुड उ चाणि हौलि
त्यार-ब्यार कु गिनती रौलि
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
राजि-खुशि छू.. कै दैई..
“दुख लगै नि कैई रे”

ईजा-बाबा झुरि जाला
आँखा आँसू बरकि जाला

राजि-खुशि छू तुमरि चेलि
दुख लगै नि कैई रे
दुख लगै नि कैई रे
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
र्फुर उडि जा मेरो काँवा

ओ म्यर लाडली प्यारि चेलि
तू छै मेरो जूँ अर पराण
साल महैण यु बिति गिण
त्यार-ब्यार ले पुरि गिण
किले नि ऐई मेरो द्धार
रिसै-रिसाई छै कि तू
राछि-खुशि कै दुख-पिडा
ओ रे काँवा सच बते दै
मेरि चेलि दुख-पिडा
मेरि चेलि दुख-पिडा

तुमरि चेलि दुख-पिडा
कसकै लगु मि मुख-पिडा
साँस-ससूर ले दहैज मा टोकि
रोज निकलणु आँसू आँखा
लुकि-छुपि कि…
ओ म्यर बाबा… ओ म्यर ईजा…

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
कै दे मेरो ईजा-बाबा
राजि-खुशि छू तुमरि चेलि
दुख लगै नि कैई रे
“ईजा-बाबा झुरि जाला
आँखा आँसू बरकि जाला”
राजि-खुशि छू कै दैई
दुख लगै नि कैई रे
दुख लगै नि कैई रे
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
र्फुर उडि जा मेरो काँवा

लेख-सुन्दर कबडोला
18/01/2013
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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