ओ माँजि… म्यर माँजि!

ओ माँजि…. म्यर माँजि….
त्यर मयालु आँचल मा
बचपन बितो जवानी मा
ले गिण माँजि परदेश मा

‘भूख लागण ऐजा खेजा
को छू अब धात लगौणि’
पापी परदेश मा…
याद ले औणि ओ माँजि
त्यर धात लगौणि
भात पशै… ऐजा रे
‘याद ले औण्दी त्यर रसीलो भात दगडि’
‘जब भूख ले लागदि दिन मा देखि’
मन ले बौडि… रुक जा माँजि
मै ले आन्दु… भात कौ खाणु
टप-टप टपकि
त्यर याद मा माँजि
”भूख लागण ता थामि ल्युण
त्यर याद नि थामि ओ माँजि
त्यर याद नि थामि ओ माँजि
त्यर याद नि थामि ओ माँजि”
कसकै थामि पापि मन तै
ओ माँजि…म्यर माँजि

तु रुन्दी रूख मा
म्यर माँजि हुर्णल दुख मा
य सोचि-सोचि त्यर दुखमा
आँख बे टपकि बँण्धार क पाणि
भुख ले थामि म्यर मुखमा
त्यर दुख-पिडा म्यर हैजो माँजि
अगिल जन्म ले हैजो म्यर माँजि
ओ माँजि… म्यर माँजि…

‘भूख नि लागण
त्यर याद लागण’
ऐजा खेजा कब कौलि
त्यर याद ले औणि
म्यर डाँड ले जाणि
बैशाख मैहण मा छुट्टी औणा
‘त्यर म्यालों ममता क भेट करु’
ओ माँजि… म्यर माँजि…

कै तू कौलि… कै मि कौला
दुख पिडा साथ जतुणा
पुराण दिना क छुई लगुला
त्यर दगडि गढ मा जूणा
फँसक-फँसक मा हाथ बटुणा
त्यर दगडि धाण माणुणा
पराल पुठोरि पुठ मा ल्युणा
पराल पुठोरि लुट मा दुणा
लुट क छाया थाक बिसुणा
ओ माँजि… म्यर माँजि…

गिनति रैगिण छुट्टी हौला
दुखले त्यर मुख मा हौला
ओ माँजि… म्यर माँजि…
अब ता पौणु हैगिण घर मा देखि
“टिक-पिठा कुछ आँसू आला
पुर याद समालि झौलि मा
मैले जाणु परदेश मा माँजि”
परदेश मा जैबे याद पुठोरि
रोज दैखण…
ओ माँजि… म्यर माँजि… !

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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