सबै हैगिण छल-बल पहाडि
दुर दँराजु नँगरु किनाँरु
गौ ले लागणो यु सुनसान
बँखाई मा लागि यु वरदान
सिमट गये रे घर परिवार
ना सुख-दुख कैकु मनमा आज
मस्त मँलग यु अपणु आप
जूँउ तरिकु ले बदलि गै
सबै हैगिण छल-बल पहाडि
पढि लिखि तुम अनपँढ छा
“पता नही है तुमको आज”
‘अपणु सँस्कृति कु आधार
बोलि-भाषा कु व्यवहार’
एम॰ए-बी॰ए तुम अनपँढ छा
बोलि-भाषा ममी-डेडि
कँहा गये रे ईजा-बौज्यु …?
सबै हैगिण छल-बल पहाडि
दि डबलु कु टुकुडि मा
एक घुँट कु दाँरु मा
दँबग बनि तुम लोटि ऊँछा
दि चार दिनु कु छुट्टि मा
“दँबग गैई यु तुमरि देखि”
गौ कु बाँटु तै दँबग
ब्यौ-बँरातु तै दँबग
बोलि-भाषा तै दँबग
फैन्शि-फैशन तै दँबग
गिज-खापडि तै दँबग
डँबलु वालु तै दँबग
कै यु छा तुमरि यु दँबग …?
बुँढ-बाँढि एक नजर
कैथे बोलि उ नजर
धुँधलित दैखणि वैक उँमर
यौवन छाडि बुँढि हैगे
सार ऊमर हाँट-बाँट तोडि
तै बनि
यु पहाड यु दँबग
यु पहाड यु दँबग
बोलो दगडियोँ कौन दँबग …?
सबै हैगिण छल-बल पहाडि
रित कु र्कज निभे दे आज
बँखाई मा जोडो कल कु बात
कुड पाँथरि अण्यार उजैलि
धात लगुणो यु पहाड
पुरैण जमान कु पुरैण रिर्वाज
बुँढ-बाँढि कु यु आँखण
आज निभे दे यु रिर्वाज
गुजर जमान कु झँवड- चाँचरि
बुँढ-बाँढि कु यु नजर
तरसि गी रे यु डगर
हुँडकि-बौल थाल नचै दे
बुढिण आँखण चमक जगै दे
चिमडि ग्लाँड हँसि दिखै दे
लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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