कै लिखदूँ (पलायन का र्दद)

मी यस कै लिखदूँ
त्यर आँखा भरदूँ
बोल पँहाडि परदेशी
कै लिखदूँ…

बुँढि ईजा कू आँख्यु कु स्याहि
कलम डूँबै बै
ईजा कु किमत आँसू मा रचँदु
जैकु बगणु आँखण आँसू
नहर किनारुँ बौल किनारुँ
पुश्तैणि धरति सिचणु कु काँरु
आँखण आँसू खेत- खलियाण मेड़ मा बैठि
पुतैई दगैई वैकु सुख- दुख हैगे
आँखा आँसू खेत मा बरकि
हरि- भरि यु खेत ले हैगे

बोल पँहाडि परदेशी
कै लिखदूँ…
बुँढ- बाँप कु छैई तू लाँठि
कसि बतु मि.. ओ ईजा
परदेशी हैगो उ लाँठि
ज्युँ छि बुढिण काँऊ कु तुमरि लाँठि
परदेशी हैगो सैण दगडि उ लाँठि

बोल पँहाडि परदेशी
कै लिखदूँ…
कस उगैई यु फसल
जबै बनेलै तू ले बौज्यु
त्यर सैण ले होलि कैकि ईजा
जस उगैई यु फसल
यु पिड़ै… याद करि मेहसूस ले हाल
किले कि दगडि
जस उगैई वस कटैई
जस उगैई वस कटैई

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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