छिलुँ जलै खौजि ल्यु

चल चला छिलुँ जलै
जलै जलै कि उजै फलै
अँन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
गुम हैई सँस्कार हमाँरु
रित-रिर्वाज बिन उजै
रित-रिर्वाज बिन उजै

हिल-मिल पहाडि छिलुँ जलै
छिलुँ जलै कि हाथ सरै
खौजि-मौजि यु रण मै
कुँर्मो-गँड्डे सँस्कृति लौ मै
बुँढ-बाँढा रितु रैण
अण्यार पडै यु बटै घटै
पुश्त पुतै ले हेगै फाम
पुश्त पुतै ले हेगै फाम

चल चला रे चल पहाडि
धाँरु वाँरु पाँरु मा
पैद हैई यु माँटु मा
रित-रैज कु छिलुँ जलै
चार रितु कु आँठ रिर्वाज
छिलुँ जलै कि खौजि आज
बिति गै रै कदुक जमान
अन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
“बिन पानि कु गगरि बोल
कै छु दगडि सँस्कृति मोल”

चल चला रे चल पहाडि
ज्युँ बिखरि छू रे हमँरु वन मा
खौजि लैणु बुढि आँखा
पुश्त पुतै आधार हमारोँ
जैकि टक टकि यु हमरि आँखा
चल चला छिलुँ जलै
जलै जलै कि उजै फलै
अँन्धकौप सी पहाडुण गर्ब
गुम हैई सँस्कार हमाँरु
रित-रिर्वाज बिन उजै
रित-रिर्वाज बिन उजै

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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